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सास्मा॒ अरं॑ प्रथ॒मं स द्वि॒तीय॑मु॒तो तृ॒तीयं॒ मनु॑षः॒ स होता॑। अ॒न्यस्या॒ गर्भ॑म॒न्य ऊं॑ जनन्त॒ सो अ॒न्येभिः॑ सचते॒ जेन्यो॒ वृषा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sāsmā aram prathamaṁ sa dvitīyam uto tṛtīyam manuṣaḥ sa hotā | anyasyā garbham anya ū jananta so anyebhiḥ sacate jenyo vṛṣā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। अ॒स्मै॒। अर॑म्। प्र॒थ॒मम्। सः। द्वि॒तीय॑म्। उ॒तो इति॑। तृ॒तीय॑म्। मनु॑षः। सः। होता॑। अ॒न्यस्याः॑। गर्भ॑म्। अ॒न्ये। ऊँ॒ इति॑। ज॒न॒न्त॒। सः। अ॒न्येभिः॑। स॒च॒ते॒। जेन्यः॑। वृषा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! (सः) वह रथयान गमन साधन (अस्मै) इस स्वामी के लिये कि जो बनानेवाला है (प्रथमम्) पहिले अर्थात् पृथिवी में गमन (सः) वह (द्वितीयम्) दूसरे जल में गमन (उतो) और (तृतीयम्) तीसरे अन्तरिक्ष में गमन को सम्बद्ध करता मिलाता है तथा (सः) वह (मनुषः) मनुष्यों से उत्पन्न हुए सर्व पदार्थ का (होता) सुख देनेवाला (सः) वह (जेन्यः) विजय करानेवाला और (वृषा) अत्यन्त बलयुक्त होता हुआ (अन्यस्याः) दूसरी गति का (गर्भम्) ग्रहण (अरम्) पूर्ण (सचते) सम्बद्ध करता है (ऊँ) उसी को (अन्येभिः) और विद्वानों के साथ (अन्ये) और विद्वान् (जनन्त) उत्पन्न करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् जन यदि बिजली रूप अग्नि को रथों में अच्छे प्रकार युक्त करें, तो यह समस्त यानों को सब गतियों से चलाता और विजय का हेतु होता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्य सोऽस्मै प्रथमं स द्वितीयमुतो तृतीयं सचते स मनुषो होता स जेन्यो वृषा सन्नन्यस्या गर्भमरं सचते तमू अन्येभिरन्ये जनन्त ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) रथः (अस्मे) स्वामिने (अरम्) पर्य्याप्तम् (प्रथमम्) आदिमं पृथिव्यां गमनम् (सः) (द्वितीयम्) जले गमनम् (उतो) अपि (तृतीयम्) अन्तरिक्षे गमनम् (मनुषः) मनुष्यजातस्य पदार्थसमूहस्य (सः) (होता) सुखप्रदाता (अन्यस्याः) गतेः (गर्भम्) ग्रहणम् (अन्ये) अपरे विद्वांसः (ऊँ) वितर्के (सः) (जनन्त) (अन्येभिः) विद्वद्भिस्सह (सचते) समवैति (जेन्यः) जापयितुं शीलः (वृषा) बलिष्ठः ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसो यदि विद्युदादिरूपमग्निं यानेषु संप्रयुञ्जते तर्ह्ययं सर्वाणि यानानि सर्वागतीर्गमयति विजयहेतुश्च भवति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोक जर विद्युतरूपी अग्नीला वाहनांमध्ये चांगल्याप्रकारे युक्त करतील तर तो अग्नी संपूर्ण वाहने सर्व प्रकारच्या गतीने चालवितो व विजय प्राप्त करून देऊ शकतो. ॥ २ ॥